अफगान संकट और भारत पर प्रभाव


🌹RENESHA IAS🌹

BY..... ✍️ RAVI KUMAR..

. (IAS JPSC UPPSC INTERVIEW FACED)


भारत के गवर्नर जनरल ऑकलैंड (1836-42) के काल में अफगानिस्तान पर अंग्रेजो के द्वारा नियंत्रण करने का प्रयास किया गया....
वहां के शासक दोस्त मोहम्मद के द्वारा पहले अंग्रेजों के साथ संपर्क स्थापित करने का प्रयास किया गया था परंतु अंग्रेजों द्वारा सकारात्मक जवाब नहीं दिए जाने के कारण दोस्त मोहम्मद ने रूस की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाया...

✍️ इसके बाद रूस राजदूत ओक्टोवीच का स्वागत अफगानिस्तान के द्वारा किया गया वहीं ऑकलैंड  के राजदूत एलेग्जेंडर वर्ग को अपमानित किया गया....

✍️ इसके बाद ऑकलैंड के द्वारा... शाह शुजा को जबरदस्ती वहां का शासक बना दिया गया दोस्त मोहम्मद को हटा दिया गया...

✍️ शाह शुजा के विरुद्ध विद्रोह होने पर आकलैंड के द्वारा एलेग्जेंडर बर्न के साथ 4500 सैनिक का 12000 अनुचर भेजे गए.... सभी मारे गए... इतिहासकार "के" ने शाह सुजा के अफगानिस्तान प्रवेश की यात्रा की तुलना शव यात्रा से की है.

✍️ इसी तरह शीत युद्ध काल में 1979 में रूसी सेना ने अफगानिस्तान में प्रवेश किया और भारी नुकसान उठाने के बाद... लेकिन अत्यधिक नुकसान उठाने के बाद अंतर उसको भी 1989 में अफगानिस्तान छोड़ना पड़ा.

✍️ लगभग यही कहानी.... 2001 से चल रहे हैं.... जब तालिबान की सत्ता को हटाने के लिए अमेरिकी और नाटो के सैनिकों ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया.... और तालिबानियों को बेदखल कर दिया.

✍️ लगभग 20 वर्षों तक नाटो और अमेरिका के सैनिक अफगानिस्तान में रहे इसके बावजूद अफगानिस्तान में यथास्थिति दिख रही है.
क्योंकि

1) अफगानिस्तान के 52% हिस्से पर तालिबान का कब्जा हो चुका है.

2) अफगानिस्तान में शांति,सुरक्षा और स्थिरता की जगह गृह युद्ध इस संभावना बढ़ गई हैं.

3) कुल 157000 लोग पिछले 20 वर्षों में मारे गए हैं.... इसमें

✍️ अब अमेरिका और नाटो वहां से किसी भी हालत में निकलना चाहते हैं.
     वर्तमान में अफगानिस्तान में अमेरिका के 2500 सैनिक और नाटो के 10000 सैनिक हैं...

✍️ अमेरिका के द्वारा अफगान सरकार को नहीं शामिल करते हुए फरवरी 2021 में तालिबान के साथ एक समझौता कर लिया गया.... इस समझौते में शामिल हैं

1) तालिबान के द्वारा अमेरिकी सैनिकों के हट जाने के बाद अलकायदा या अन्य आतंकवादी समूहों को संरक्षण और शरण नहीं दिया जाएगा.

2) तालिबान अफगानिस्तान सरकार के साथ वार्ता कर सभी समस्याओं का हल निकालेगा

3) तालिबान के द्वारा अफगानिस्तान में हिंसा नहीं फैलाई जाएगी.

✍️ अमेरिका और नाटो के द्वारा मई 2021 तक अपने सैनिकों को वापस बुलाने का फैसला लिया गया है.... लेकिन अफगानिस्तान में पहले हिंसा को देखते हुए इससे कुछ समय के लिए डाला जा सकता है.

✍️ लेकिन यह तो निश्चित है कि नाटो और अमेरिकी सैनिक अब ज्यादा दिनों तक अफगानिस्तान में नहीं रहेंगे.

✍️ इसके लिए अमेरिकी राष्ट्रपति के द्वारा एक योजना प्रस्तुत की गई है जिसके अंतर्गत अफगानिस्तान में एक अंतरिम सरकार का गठन किया जाएगा... अंतरिम सरकार में तालिबान और वर्तमान अफगान सरकार से संबंधित दल भी शामिल होंगे.

✍️ अंतरिम सरकार के गठन से पूर्व अफगानिस्तान के वर्तमान अब्दुल गनी की सरकार इस्तीफा दे देगी.

✍️ अंतरिम सरकार के द्वारा अफगानिस्तान के लिए एक संविधान का निर्माण किया जाएगा.

✍️ इसे संविधान के अनुसार फिर चुनाव होंगे अब नहीं सरकार बनेगी

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✍️ रूस पाकिस्तान और चीन जैसे देशों ने भी अमेरिका किस योजना का समर्थन किया है क्योंकि उसे पता है कि अमेरिका के इस योजना के क्रियान्वित होने पर तालिबान का प्रभाव अफगानिस्तान पर बढ़ जाएगा और अफगानिस्तान पर पाकिस्तान,चीन और रूस का प्रदूषण नियंत्रण आसान हो जाएगा...

✍️ अमेरिका के अनुसार अफगानिस्तान में शांति हेतु ईरान भारत पाकिस्तान चीन और रूस सभी को सहयोग करना होगा.

✍️ वास्तव में रूस और अमेरिका समझ चुके हैं कि अफगानिस्तान में कोई भी विकल्प तालिबान के बिना संभव नहीं है...

🌹 भारत पर नाटो और अमेरिकी सैनिकों की वापसी का क्या प्रभाव पड़ेगा? 🌹

✍️ भारत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेंगे

1 ) पहली बात भारत तालिबान को एक राजनीतिक समूह के रूप में मान्यता नहीं देता है क्योंकि  इसके रिश्ते आतंकवादियों से है.... हार 1999 में जब भारत के यात्री विमान अपहरण कर कंधार ले जाए गए थे... तो तालिबान के द्वारा उन आतंकवादियों का साथ दिया गया था और भारत के जेलों में बंद कई आतंकवादियों को छोड़ने को मजबूर किया गया था.

2) तालिबान के आगमन के बाद अफगानिस्तान में फिर से एक बार आतंकवाद हथियारों की तस्करी और नशीले पदार्थों की तस्करी का दौर शुरू हो सकता है.

3) तालिबान की सत्ता में भागीदारी के बाद अफगानिस्तान में पाकिस्तान का पक्ष मजबूत होगा... पाकिस्तान के द्वारा अफगानिस्तान में बंद पड़े अपने आतंकवादी प्रशिक्षण कैंपों को फिर से शुरू किया जा सकता है... जो कश्मीर में अस्थिरता फैलाने में सहायक होते हैं...

4) अफगानिस्तान पर लगाई गई अपनी सेना को पाकिस्तान फिर निश्चिंत होकर भारतीय सीमा पर लगा सकता है.

5) ईरान में भारत के द्वारा चाबहार बंदरगाह का विकास किया जा रहा है... जिसके माध्यम से अफगानिस्तान होते हुए मध्य एशिया पहुंचने की योजना थी... अभी योजना खटाई में पड़ सकता है.

6) भारत के द्वारा अफगानिस्तान में कई तरह के विकास परियोजनाएं चलाए जा रहे थे

✍️ सलमा बांध का निर्माण

✍️ अफगानिस्तान के संसद का निर्माण

जिसमें 3 बिलीयन डॉलर का निवेश किया गया था.... विकास योजनाओं को चलाने के दौरान कई बार भारतीय कर्मियों पर आक्रमण भी हुए हैं.....  लेकिन सरकार के सहयोग के कारण...  भारत विकास परियोजनाओं को गति प्रदान करता रहा है... लेकिन अब यह एक समस्या बन जाएगा.

निश्चित रूप से भारत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा लेकिन भारत को अफगानिस्तान के लोकतांत्रिक शक्तियों की और वहां की  लोकतांत्रिक विचार वाले लोगों को हमेशा समर्थन करने की नीति पर कायम रहनी चाहिए.

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