आखिर हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था कोरोना काल में क्यों चरमराई??
🌹RENESHA IAS🌹
BY..... ✍️ RAVI KUMAR...
(IAS JPSC UPPSC INTERVIEW FACED)
72 सालों में स्वास्थ्य क्षेत्र में हमने क्या किया?
🌹 एक विश्लेषण.... रवि सर के द्वारा.... आपके JPSC BPSC IAS मुख्य परीक्षाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण 🌹
🌹 HOT TOPICS 🌹
देश आज नेहरू युग से मोदी युग तक पहुंच चुका है. आजादी के 70 वर्ष गुजर चुके हैं परंतु आज कोरोना महामारी के दौरान में अगर देखा जाए तो अलग-अलग सरकारों द्वारा जो दावे स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए किए गए थे, वे दावे पूरी तरह से ध्वस्त होते हुए नजर आ रहे हैं.
आज कोरोनावायरस के लिए ना पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन उपलब्ध है ना हॉस्पिटलों में बेड उपलब्ध है. प्रत्येक दिन मौत के नए नए रिकॉर्ड बन रहे हैं. प्रतिवर्ष अरबों रुपए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष टैक्स देने वाले लोगों को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है.यह राष्ट्रीय शर्म की बात है.
वित्तीय वर्ष 2019-20 में स्वास्थ्य पर जीडीपी का 1.5% खर्च किया गया. राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017-25 जीडीपी का 2.5 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च करने का लक्ष्य रखा गया है. अमेरिका के द्वारा स्वास्थ्य पर कुल जीडीपी का 17.5 प्रतिशत खर्च किया जाता है. आप अंतर समझ सकते हैं.
आज हमारे देश में 90 लाख से अधिक मंदिर हैं और 30 लाख से अधिक मस्जिद है. चर्च और गुरुद्वारों के संख्या भी हजारों में हैं. लेकिन अगर सरकारी और निजी दोनों हॉस्पिटलों की कुल संख्या की गणना की जाए तो यह 80000 भी नहीं पहुंचती. 2020 के अंत में देश में 43486 निजी हॉस्पिटल थे जिसमें लगभग 12 लाख बेड, 59000 आईसीयू और 30,000 वेंटीलेटर्स उपलब्ध थे. वही सरकारी हॉस्पिटल की संख्या 2020 के अंत में लगभग 26000 थी जिसमें 7 लाख से कुछ अधिक बेड 36000 आईसीयू और 18000 वेंटीलेटर उपलब्ध थे.
भारत में कुल 11.50 लाख डॉक्टर रजिस्टर्ड है. इनमें भी आधे से अधिक आंध्रप्रदेश कर्नाटक महाराष्ट्र तमिलनाडु में हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार प्रति लाख आबादी पर 100 डॉक्टर रहने चाहिए परंतु भारत में प्रत्येक लाख आबादी पर 10 डॉक्टर हैं. इनमें भी एक तिहाई के पास उचित सर्टिफिकेट नहीं है. भारत में 15 लाख नसों की कमी है और 25 लाख पैरामेडिकल स्टाफ की कमी है.
अब खुद समझ सकते हैं कितनी बड़ी आबादी के लिए यह चिकित्सा सुविधा पर्याप्त नहीं है.
केंद्र और राज्य सरकार से आग्रह है कि स्वास्थ्य क्षेत्र पर प्राथमिकता के तौर पर ध्यान दिया जाए.
रवि कुमार
🌹 RENESHA IAS 🌹
🌹 एक विश्लेषण.... रवि सर के द्वारा.... आपके JPSC BPSC IAS मुख्य परीक्षाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण 🌹
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देश आज नेहरू युग से मोदी युग तक पहुंच चुका है. आजादी के 70 वर्ष गुजर चुके हैं परंतु आज कोरोना महामारी के दौरान में अगर देखा जाए तो अलग-अलग सरकारों द्वारा जो दावे स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए किए गए थे, वे दावे पूरी तरह से ध्वस्त होते हुए नजर आ रहे हैं.
आज कोरोनावायरस के लिए ना पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन उपलब्ध है ना हॉस्पिटलों में बेड उपलब्ध है. प्रत्येक दिन मौत के नए नए रिकॉर्ड बन रहे हैं. प्रतिवर्ष अरबों रुपए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष टैक्स देने वाले लोगों को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है.यह राष्ट्रीय शर्म की बात है.
वित्तीय वर्ष 2019-20 में स्वास्थ्य पर जीडीपी का 1.5% खर्च किया गया. राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017-25 जीडीपी का 2.5 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च करने का लक्ष्य रखा गया है. अमेरिका के द्वारा स्वास्थ्य पर कुल जीडीपी का 17.5 प्रतिशत खर्च किया जाता है. आप अंतर समझ सकते हैं.
आज हमारे देश में 90 लाख से अधिक मंदिर हैं और 30 लाख से अधिक मस्जिद है. चर्च और गुरुद्वारों के संख्या भी हजारों में हैं. लेकिन अगर सरकारी और निजी दोनों हॉस्पिटलों की कुल संख्या की गणना की जाए तो यह 80000 भी नहीं पहुंचती. 2020 के अंत में देश में 43486 निजी हॉस्पिटल थे जिसमें लगभग 12 लाख बेड, 59000 आईसीयू और 30,000 वेंटीलेटर्स उपलब्ध थे. वही सरकारी हॉस्पिटल की संख्या 2020 के अंत में लगभग 26000 थी जिसमें 7 लाख से कुछ अधिक बेड 36000 आईसीयू और 18000 वेंटीलेटर उपलब्ध थे.
भारत में कुल 11.50 लाख डॉक्टर रजिस्टर्ड है. इनमें भी आधे से अधिक आंध्रप्रदेश कर्नाटक महाराष्ट्र तमिलनाडु में हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार प्रति लाख आबादी पर 100 डॉक्टर रहने चाहिए परंतु भारत में प्रत्येक लाख आबादी पर 10 डॉक्टर हैं. इनमें भी एक तिहाई के पास उचित सर्टिफिकेट नहीं है. भारत में 15 लाख नसों की कमी है और 25 लाख पैरामेडिकल स्टाफ की कमी है.
अब खुद समझ सकते हैं कितनी बड़ी आबादी के लिए यह चिकित्सा सुविधा पर्याप्त नहीं है.
केंद्र और राज्य सरकार से आग्रह है कि स्वास्थ्य क्षेत्र पर प्राथमिकता के तौर पर ध्यान दिया जाए.
रवि कुमार
🌹 RENESHA IAS 🌹
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