PLANT TISSUE
🌹RENESHA IAS🌹
9661163344
BY..... ✍️ RAVI KUMAR...
(IAS JPSC UPPSC INTERVIEW FACED)
हिस्टोलोजी में उत्तकों का अध्ययन किया जाता है.
उतक दो प्रकार के होते हैं
1) स्थाई उत्तक ( Meri stematic tissue)
2) विभज्योतक ( permanent tissue)
1) स्थाई उत्तक
A) सरल स्थाई उत्तक सिंपल परमानेंट टिशु
B) जटिल स्थाई उत्तक कंपलेक्स परमानेंट टिशु
C) स्रावी स्थाई उत्तक सेक्रेटरी परमानेंट टिशु
A) सिंपल परमानेंट टिशु
इसमें शामिल सभी कोशिकाओं के रचना कार्य और आकार समान होते हैं.
इससे भी कई भागों में बांटा जा सकता है
i) मृदोतक... (पैरेंकाइमा)
यह उत्तक गोलाकार या अंडाकार होते हैं. यह उत्तक वास्तव में जीवित कोशिकाओं से निर्मित होता है.इनकी उपस्थिति मुख्य रूप से पौधों के कोमल भागों में होते हैं जैसे फूल और पत्ते.
तभी तभी इन उत्तक को में वायु कोष्ठ पाए जाते हैं.... इन वायु कोष्ठ वाले उत्तरों को ऐरेंकायमा कहा जाता है.
जैसे केला के वृक्ष में
ii) स्थूलकोन उत्तक (कॉलेनकइमा)
इस तरह के उत्तक वृक्षों के तनों के ठीक नीचे पाए जाते हैं जो तनों को दृढ़ता प्रदान करते हैं.
सूर्यमुखी जैसे पौधों में इस उत्तक के द्वारा भोजन निर्माण भी किया जाता है.
iii) दृढ उत्तक (स्क्लेरेंकायमा)
यह उत्तर वास्तव में मृत कोशिकाओं से निर्मित होता है.
इनका कार्य पौधों को दृढ़ता प्रदान करना और उनकी लंबाई वृद्धि में मदद करना.
फलों के गुठली इसी उत्तक से बने होते हैं.
B) कंपलेक्स परमानेंट टिशु
यह उत्तक वास्तव में अलग-अलग प्रकार के कोशिकाओं का समूह होता है इसलिए इसे मिश्रित उत्तक भी कहते हैं.
इसके दो प्रमुख प्रकार होते हैं
i) जाइलम XYLEM
जड़ तना पतियों में पाए जाते हैं. इनका मुख्य कार्य खनिज लवण और जल को जड़ से ऊपर पौधों के विभिन्न भागों में पहुंचाना है.
ii) फ्लोएम
इसका कार्य जाइलम उत्तक के ठीक उल्टा है. इसके द्वारा पतियों द्वारा निर्मित भोजन को पौधों के विभिन्न भागों तक पहुंचाना है.
फ्लोएम फाइबर "जूट और सन" में पाए जाते हैं.
iii) स्रावी उत्तक
कुछ पौधों में एक विशेष प्रकार के कोशिकाओं का समूह होता है जो.. सुगंधित पदार्थ या तेल जैसे पदार्थों का उत्सर्जन करते हैं.
एक कोशिकाओं के समूह है इसी प्रकार के उत्तकों से बने हुए होते हैं.
2) विभज्योतक
1) प्राइमरी मेरिस्टमैटिक उत्तक
* जब यह उत्तक पौधों के शीर्ष भाग बन पाए जाते हैं तो इनसे लंबाई की वृद्धि होती है.
* जब यह उत्तक पौधों के किनारों पर पाए जाते हैं तो मोटाई में वृद्धि होते हैं.
JPSC JSSC CGL
9661163344
Comments